फूलो के शाख पे अब तो कांटे ही कांटे है ।
मनहूसियत इस तरह छाई की जिंदगी में हमने सिर्फ़ दर्द ही बांटे है ।
यु तो वादियों में घटाएं हर बरस आई ।
मगर हम वही प्यासे के प्यासे है ।
लोग कहतें है वो भी रोई होगी मुझसे बिछर के ।
रहने दो ये सब सिर्फ़ कहने की बातें है ।
कभी हम भी भींगे थे बरसती सावन में ।
अब तो बस उसकी यादें ही यादें है ।
फूलो के शाख पे अब तो कांटे ही कांटें है ।
मनहूसियत इस तरह छाई की जिंदगी में हमने सिर्फ़ दर्द ही बाँटें है।
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