Tuesday, March 27, 2012

एकांत चाहता हूँ


ना जनता हो जिसे, ना पहचानता हो कोई,
अजनबी की तरह, रहना गुमनाम चाहता हूँ !
हर पहचान से दूर, एकांत चाहता हूँ  !!

जहा गम ना हो अपने या किसी अपनों का,
ना हो कोई उम्मीद सजोये सपनो का !
हर बन्धनों से मुक्त, एकांत चाहता हूँ !!

जहा इन्तेजार ना हो मौत के आने का,
न ही आस हो जिंदगी के गुनगुनाने का !
आदि और अंत से मुक्त, एकांत चाहता हूँ !!

जहा इस दिल में ना हो कोई दर्द, ना बसे कोई धरकन,
और जहा पे दिमाग भी कुछ समझना छोर दे !
इस दिल और दिमाग को छोर, एकांत चाहता हूँ !!

जाहा ना कोई याद हो किसी के पीछे छुट जाने का,
ना ही कोई आस हो किसी के पास आने का !
इन भावनाओ से मुक्त, एकांत चाहता हूँ !!

जाहा किसी से ना कोई आस को,
ना ही किसी को मुझमे विस्वास हो !
इन बन्धनों से परे, एकांत चाहता हूँ !!