सीधे दिल से
Saturday, November 10, 2012
चौराहे पे खरी बुत
रहते है भीर में अकेले एसे, जैसे की चौराहे पे खरी बुत !
बढ़ते रहे अकेले, और जब गिरे भी तो संभले खुद !!
मन एसा अनछुआ की जैसे वीराने का ताल
जिसकी सतह वर्षो से एसी शांत,
की उसपे एक मोटी परत जम गयी हो !
और उसके निचे सारी भावनाए दब सी गयी हो !!
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