ले वक़्त ! आज अपने ख्वाबो को दफना के हार मान ली हमने ।
माना की कमजोर बारा हूँ तुझसे, मगर इतनी भी खुन्नस क्या थी मुझसे ।।
अकेले अभिमन्यु को सबके साथ घेरा, ये भी क्या न्याय किया था तुमने ।
कोई साथ भी कैसे आता मेरे, तेरे से तो पहले ही हार मान राखी थी सबने ।।
तरपा भी, तरसा भी, सारा जहाँ भटका भी, तुझसे जूझने में कसर भी कहा राखी थी हमने ।
सर भी पटके, धागे भी बाँधे, मन्नत भी तो मांगे खूब, पर रहमत न दिखाई उस रब ने ।।
और कितना जूझता तुझ से अकेला, अपनों को भी तो तेरे तरफ ही खरा देखा था हमने ।
ले वक़्त ! आज अपने ख्वाबो को दफना के हार मान ली हमने ।।